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भिखारी राजा खुश करने भी नृत्य प्रकृति का कया कार्य बचेंगा चाहत एकदिनमौज-मस्तीकरलेंवक्तकेबहावमेंमनकीकरलेइसबहतेहुएपड़ावपरथामलेपरिवारकेअनमोलसाथकोपलभरकेलिएउनकेलिएजीले नर रीति नहीं हरी रीति चलती हैं आजकल खुदगर्ज मतलबी हो गये हैं योजना हमारी संसार सागर चाहे चर्च कीर्ति नया साल चैन हित तर गया रहते हो या गुरूद्वारा रमना दुनिया को

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